21 May 2009

तुझे ढ़ूँढा

सितारो की इन महेफिल में तुझे ढ़ूँढा
बहारों की इन परछाई में तुझे ढ़ूँढा.

निगाहों में आबाद निकला था ऐसे कि
अलंकारो की इन फिजाओ में तुझे ढ़ूँढा.

आज भवरों के साथ खेलता था कोइ
जैसे मौसम की इन शरारत में तुझे ढ़ूँढा.

रोशनी की शतरंज में कोई चाल ऐसी
जैसे पायदल की कवायत में तुझे ढ़ूँढा.

गुलशन की बहारो में बीखरी यादों थी
जैसे बसंत की लौटती हवाओ में तुझे ढ़ूँढा.

कांति वाछाणी

7 comments:

  1. achhi rachna
    badhai

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  2. बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

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  3. अच्छी कोशिश। जरा तुझे ढ़ूँढ़ा लिखें तो मजा आ जाय।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  4. Anonymous12:14 AM

    ठीक-ठाक शुरूआत...
    शुभकामनाएं....

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  5. चिटठा जगत मैं आप का स्वागत है । लिखते रहीये हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

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  6. achi savedana hee

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