सितारो की इन महेफिल में तुझे ढ़ूँढा
बहारों की इन परछाई में तुझे ढ़ूँढा.
निगाहों में आबाद निकला था ऐसे कि
अलंकारो की इन फिजाओ में तुझे ढ़ूँढा.
आज भवरों के साथ खेलता था कोइ
जैसे मौसम की इन शरारत में तुझे ढ़ूँढा.
रोशनी की शतरंज में कोई चाल ऐसी
जैसे पायदल की कवायत में तुझे ढ़ूँढा.
गुलशन की बहारो में बीखरी यादों थी
जैसे बसंत की लौटती हवाओ में तुझे ढ़ूँढा.
कांति वाछाणी
achhi rachna
ReplyDeletebadhai
बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
ReplyDeleteअच्छी कोशिश। जरा तुझे ढ़ूँढ़ा लिखें तो मजा आ जाय।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
ठीक-ठाक शुरूआत...
ReplyDeleteशुभकामनाएं....
mila ke nahi. narayan narayan
ReplyDeleteचिटठा जगत मैं आप का स्वागत है । लिखते रहीये हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
ReplyDeleteachi savedana hee
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