कही आसमान से गिरा समझ कर
आज नफरत से छुआ समझ कर.
अपनी गलतियां समजने मैं चला था
वफा से अपना मुह मोडा समझ कर.
तितलीयों के पंख से संदेशा जोडा था
बंसत की गुलबानी छोडा समज कर.
किताब के पनो से शिकायत लाया था
पेडों की रुहाई का संदेशा समज कर.
परीदों के शहर में कोई अकेला था
जैसे की लडकपन लौटा समज कर .
कांति वाछाणी
achhi baat!
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