होगी कोई ख्वाईश अधुरी आज यु ही,
नही तो कुदरत क्यों रुठे आज यु ही.
कोई ये तो बताये दिल के दर्द् को
ये समजे हकिकत भी रुठे आज यु ही.
जो मिले हर शख्स परेशान नजर ये,
फिर ये समजे क्युं रुठे आज यु ही.
वक़्त के साथ लिए चले थे दिवानगी,
ख़ुद को बेग़ाना समजते रुठे आज यु ही.
चाहे उसे कोई नजर शिकायत क्यु है,
जैसे मुझको मेरी वफा रुठे आज यु ही.
- कांति वाछाणी
कोशिश अच्छी है मगर ये गज़ल अभी सही मात्रा मे नही बनी। कोशिश जारी रखिये। शुभकामनायें। पहले सभी इसी तरह शुरू करते हैं।
ReplyDeleteचाहे उसे कोई नजर शिकायत क्यु है,
ReplyDeleteजैसे मुझको मेरी वफा रुठे आज यु ही.
maja aavi gayi...