02 July 2010

लूट न जाय

अदा ये और न दिखा आईना रुठ न जाय,
जैसे की दिल ये शीशा समज टुट न जाय....

आये थे तेरी महेफील में अजनबी बनकर,
सोचा की सितारे बनकर क्यों लूट न जाय....

इन्तजार था तेरे प्यार की तस्वीर बन जाय,
शाम के जाम पीते हम क्यों लूट न जाय....

मंज़िल थी मेरी कोई आखरी मुकाम बनकर,
किनारा बनकर कोई कश्ती क्यों टूट न जाय....

-कांति वाछाणी

1 comment:

  1. अदा ये और न दिखा आईना रुठ न जाय,
    जैसे की दिल ये शीशा समज टुट न जाय....

    आये थे तेरी महेफील में अजनबी बनकर,
    सोचा की सितारे बनकर क्यों लूट न जाय....

    supperb lines sir...

    Irshad...

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