अदा ये और न दिखा आईना रुठ न जाय,
जैसे की दिल ये शीशा समज टुट न जाय....
आये थे तेरी महेफील में अजनबी बनकर,
सोचा की सितारे बनकर क्यों लूट न जाय....
इन्तजार था तेरे प्यार की तस्वीर बन जाय,
शाम के जाम पीते हम क्यों लूट न जाय....
मंज़िल थी मेरी कोई आखरी मुकाम बनकर,
किनारा बनकर कोई कश्ती क्यों टूट न जाय....
-कांति वाछाणी
अदा ये और न दिखा आईना रुठ न जाय,
ReplyDeleteजैसे की दिल ये शीशा समज टुट न जाय....
आये थे तेरी महेफील में अजनबी बनकर,
सोचा की सितारे बनकर क्यों लूट न जाय....
supperb lines sir...
Irshad...