20 September 2009

तम्मना

कोइ नजर-ए-अंदाज बयां करें
होश में आकर खयाल बयां करें.

कैसी ये हकीकत खुद को समजे
मुस्कुरा कर हर वक्त बयां करें.

कोइ रजिश-ए-दुश्मनी ना छोड दे
आइना हो कर खामोश बयां करे

बस तम्मना यही थी कोइ उमीद पे
नादान ये दिल-ए-इश्क बयां करे.

कांति वाछाणी

1 comment:

  1. Hellooo...
    bhau j mast lakhan chee
    keep it up ...:)

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