પુરૂષાર્થ
20 September 2009
तम्मना
कोइ नजर-ए-अंदाज बयां करें
होश में आकर खयाल बयां करें.
कैसी ये हकीकत खुद को समजे
मुस्कुरा कर हर वक्त बयां करें.
कोइ रजिश-ए-दुश्मनी ना छोड दे
आइना हो कर खामोश बयां करे
बस तम्मना यही थी कोइ उमीद पे
नादान ये दिल-ए-इश्क बयां करे.
कांति वाछाणी
1 comment:
Rushang Desai
12:16 PM
Hellooo...
bhau j mast lakhan chee
keep it up ...:)
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Hellooo...
ReplyDeletebhau j mast lakhan chee
keep it up ...:)