19 June 2009

चले हम

बिखरे रिश्तो की याद लेकर चले हम,
आज खुद पहचान बनकर चले हम.

धुवे की तरह कोहरामें लिपटी यादे थी,
शायद हकीकत सम्भालकर चले हम.

ख्वाबो में ढ़ूँढती कोई अनछुई यादे थी,
जैसे कितबों के पन्ने पलटकर चले हम.

सिले हुए लबो पे अनकही आरजु थी,
फिर मौसम की रुखमे घैरकर चले हम.

सुखे तिनको ने मौसम से मुह मोड दी थी,
जैसे बागबान में फिर से लौटाकर चले हम.

कांति वाछाणी

1 comment:

  1. Nice one about YAD.saari kavita Che.
    mara blogma jai yad vaancho.

    http://kavyadhara.com/hindi

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