कैसी ये नाराजगी हमें आबाद दुर करें
कोई ये समजे हकीकत बयां और करें.
तन्हाई ये तेरा ख्याल लेकर समजे क्या ?
कोई वफा से ये हमसफर मजबुर करें.
कोई शिकायत न होगी दिल रुठने की
पुरे जख्मो भरने का क्यौ इंन्तेजार करें.
वक़्त हर फासला अपनो से क्यौ है आज
कोई दर्द अपना बैगाना समजकर करें.
रुके कदम कोई दिशाएं छोड चले थे हम
मंजिले तलाश की ख्वाईश वक़्त हर करें.
कांति वाछाणी
२६-०८-०९
સુંદર રચના.....
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